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मुख्य सचिव सुधांश पंत ने करौली कलेक्टर को लगाई फटकार: जम्मू-कश्मीर से छुट्टी मना रहे IAS नीलाभ सक्सेना के रवैये पर उठे सवाल

राजस्थान : में एक बार फिर प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल खड़े हो गए हैं। मामला जुड़ा है करौली जिले के कलेक्टर नीलाभ सक्सेना से, जो छुट्टी लेकर जम्मू-कश्मीर चले गए और वहीं से मुख्य सचिव सुधांश पंत द्वारा आयोजित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग मीटिंग में शामिल हुए। जैसे ही मुख्य सचिव को उनकी लोकेशन की जानकारी मिली, वे भड़क उठे और मीटिंग के दौरान ही सक्सेना को कड़ी फटकार लगाई।


क्या हुआ मीटिंग में?

सूत्रों के अनुसार, मुख्य सचिव सुधांश पंत ने करौली और सवाई माधोपुर जिलों के कलेक्टरों के साथ एक महत्वपूर्ण ऑनलाइन बैठक बुलाई थी। इस बैठक का उद्देश्य था—गर्मी के मौसम में बिजली और पानी की उपलब्धता की समीक्षा करना, क्योंकि प्रदेश के कई जिलों में इस समय गंभीर जल संकट और बिजली कटौती की स्थिति बनी हुई है।

जब मीटिंग के दौरान कलेक्टर सक्सेना से उनकी लोकेशन पूछी गई, तो उन्होंने जवाब दिया कि वे जम्मू-कश्मीर में हैं। यह सुनते ही मुख्य सचिव ने गुस्से में कहा:

“आपने छुट्टी होम टाउन के नाम पर ली थी, लेकिन आप जम्मू-कश्मीर में छुट्टियां मना रहे हैं? यदि आपने सही जानकारी दी होती, तो छुट्टी को मंजूरी नहीं दी जाती। इस समय आपका जिले में होना बेहद जरूरी था। ये गैर-जिम्मेदाराना रवैया आपकी प्रशासनिक समझ पर सवाल खड़ा करता है।”


प्रशासनिक असंवेदनशीलता पर गंभीर टिप्पणी

पंत ने यह भी कहा कि करौली जिले में लोग गर्मी से बेहाल हैं, पानी और बिजली की गंभीर समस्या बनी हुई है। ऐसे समय में जिलाधिकारी का इस तरह छुट्टी लेकर दूर जाना न केवल असंवेदनशील है, बल्कि यह उनकी जिम्मेदारी से भी भागने जैसा है।

“जब आम लोग गर्मी में तड़प रहे हैं, आप ठंडी वादियों में हैं? आपकी प्राथमिकता जनता की सेवा होनी चाहिए, न कि निजी आराम,” — सुधांश पंत, मुख्य सचिव


क्या हो सकती है कार्रवाई?

इस पूरी घटना के बाद अब माना जा रहा है कि राज्य सरकार कलेक्टर नीलाभ सक्सेना के खिलाफ सख्त कदम उठा सकती है। यह मुद्दा मुख्यमंत्री के संज्ञान में भी लाया जा सकता है, और यदि बात आगे बढ़ी, तो उन्हें प्रशासनिक चेतावनी या स्थानांतरण का सामना करना पड़ सकता है।


जनता की प्रतिक्रिया:

सोशल मीडिया पर भी इस घटना को लेकर जनता की नाराजगी देखने को मिल रही है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब जनता के मुद्दों को प्राथमिकता देनी चाहिए, तब अधिकारी छुट्टियों में कैसे व्यस्त हो सकते हैं? कुछ यूज़र्स ने लिखा:

“अगर यही हाल रहा तो आम लोगों की परेशानी कौन सुनेगा?”

“IAS अधिकारी पहले जनता की जिम्मेदारी समझें, तब जाएं छुट्टियां मनाने।”


निष्कर्ष:

इस पूरी घटना ने एक बार फिर यह साबित किया है कि प्रशासनिक पदों पर बैठे अधिकारियों की जिम्मेदारी सिर्फ कुर्सी पर बैठना नहीं, बल्कि ज़मीन पर मौजूद समस्याओं को समझना और उनके समाधान में लगे रहना है। अब देखना ये होगा कि सरकार इस पर क्या कदम उठाती है और क्या नीलाभ सक्सेना को इस लापरवाही की कीमत चुकानी पड़ेगी।

Written By

Monika Sharma

Desk Reporter

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