जयपुर। भारतीय सेना के वीर जवानों और अफसरों की वीरता का इतिहास दुनिया जानती है, लेकिन राजस्थान के उन फौजी अफसरों की कहानी कम ही लोग जानते हैं, जिनकी बहादुरी ने पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांट दिया। 1971 के युद्ध में राजस्थान के इन जांबाजों ने पाकिस्तान को ऐसी शिकस्त दी कि उनके बड़े-बड़े अफसरों के आंसू निकल आए।
1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया था, लेकिन इसका नतीजा पूरी दुनिया ने देखा। पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इस युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) आजाद हो गया।
राजस्थान के फौजी अफसरों की भूमिका इस युद्ध में बेहद अहम रही। रेगिस्तानी इलाकों में माहिर इन अफसरों ने पाकिस्तान के कई अहम ठिकानों पर कब्जा कर लिया। उनके साहस और नेतृत्व ने पाकिस्तान के बड़े-बड़े सैन्य अफसरों को हिला कर रख दिया।
ब्रिगेडियर राम सिंह राठौड़: जिन्होंने अपनी सूझबूझ से पाकिस्तानी सैनिकों को चारों ओर से घेर लिया।
लेफ्टिनेंट जनरल रणजीत सिंह शेखावत: जिन्होंने दुश्मन की पोस्ट पर सीधे हमला कर उन्हें भागने पर मजबूर किया।
कर्नल भूपेंद्र सिंह चौहान: जिनकी रणनीति ने दुश्मन के सप्लाई लाइन को काट दिया।
युद्ध के बाद पाकिस्तानी सेना के कई बड़े अधिकारी भारतीय अफसरों के सामने आत्मसमर्पण करते समय रोते हुए नजर आए। उनका कहना था कि वे अपने देश में मुंह दिखाने लायक नहीं रहे।
पाकिस्तानी सैनिकों ने भी स्वीकार किया कि उनके अधिकारी हार का सामना नहीं कर पा रहे थे। एक पाकिस्तानी सैनिक ने कहा, "हमारे अफसर कहते थे कि हमने सब कुछ खो दिया। अब हमारे पास कुछ नहीं बचा।"
राजस्थान में हर परिवार में कोई न कोई फौज में है। यहां के जवानों में देशभक्ति की भावना जन्म से ही होती है। 1971 युद्ध में राजस्थान के कई अफसरों और जवानों ने अपनी जान की परवाह किए बिना भारत का नाम रोशन किया।
1971 का युद्ध भारतीय सेना के लिए सिर्फ एक जीत नहीं थी, बल्कि यह पाकिस्तान की सबसे बड़ी हार थी। राजस्थान के इन वीरों ने दिखा दिया कि जब भी देश पर संकट आता है, वे अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिए तैयार रहते हैं।
राजस्थान के फौजी अफसरों की वीरता भारत की सुरक्षा का मजबूत स्तंभ है। उनके बलिदान और साहस की कहानियां हमेशा भारतीय सेना को प्रेरणा देती रहेंगी।
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