दिल्ली | देश की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली जेल तिहाड़ के बाहर उस वक्त सनसनी फैल गई जब गेट नंबर 3 के पास एक कटी-फटी लाश मिली। खास बात यह रही कि यह तीसरा मामला है जब इस कातिल ने प्राइवेट पार्ट काटकर शव को जेल गेट के सामने फेंका है।
पुलिस को शक था कि यह किसी मानसिक रूप से विक्षिप्त अपराधी की करतूत है, लेकिन जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी, पूरा केस एक सीरियल किलर की खौफनाक मानसिकता को उजागर करता चला गया।
घटना की शुरुआत 19 अक्टूबर 2006 की रात से मानी जा रही है, जब दिल्ली के हैदरपुर बादली गांव के एक जर्जर कमरे में दो लोग आमने-सामने बैठे थे। एक हट्टा-कट्टा, सांवले रंग का शख्स सामने बैठकर पूछता है -
"अनिल, बहुत दिनों बाद आए हो... क्या खाओगे?"
वहीं से शुरू हुआ था एक ऐसा अपराध सफर, जिसकी मंज़िल थी तिहाड़ गेट के बाहर पड़ी लाशें।
गिरफ्तारी के बाद आरोपी ने जो कहा, उसने पुलिस अधिकारियों के रोंगटे खड़े कर दिए। उसका कहना था:
"अगर साल में 7-8 मर्डर न करूं, तो मैं बेचैन हो जाता हूं। मेरा दिमाग घुमने लगता है। ये मेरे लिए एक राहत जैसा है।"
पूछताछ में पता चला कि वह अपने शिकारों को पहले भरोसे में लेता, फिर बर्बरता से हत्या करता, और फिर उनके शरीर के अंग काटकर शव को खास तौर पर तिहाड़ गेट के बाहर फेंक देता। यह उसके लिए एक प्रतीकात्मक संदेश था, मानो वह सिस्टम को चुनौती दे रहा हो।
सीसीटीवी फुटेज, शवों की स्थिति, और घटनाओं के पैटर्न को मिलाकर पुलिस ने प्रोफाइलिंग शुरू की।
आखिरकार, एक पुराने अपराधी के रिकॉर्ड से मेल खाने के बाद पुलिस को सफलता मिली और आरोपी को धर दबोचा गया। अब तक वह कुल 11 हत्याएं कर चुका है, जिनमें से तीन शव तिहाड़ के बाहर फेंके गए थे।
क्या तिहाड़ जैसी सुरक्षित जेल के बाहर लगातार लाशें फेंका जाना सुरक्षा व्यवस्था की विफलता नहीं है?
क्या दिल्ली पुलिस की क्राइम इन्वेस्टिगेशन यूनिट को ऐसे मामलों में और संवेदनशील और तेज़ नहीं होना चाहिए?
क्या मानसिक विक्षिप्त अपराधियों की ट्रैकिंग के लिए कोई विशेष तंत्र विकसित किया गया है?
यह मामला सिर्फ एक सीरियल किलर की सनक का नहीं, बल्कि सुरक्षा व्यवस्था, समाज और न्याय प्रणाली के सामने एक सवाल भी है। तिहाड़ जेल के बाहर शवों का मिलना ना केवल भयावह है, बल्कि यह भी दिखाता है कि अपराधी किस हद तक जाकर चुनौती दे सकते हैं।
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