राजसमंद: राजस्थान की गर्म धरती पर जहां आम जनजीवन भीषण गर्मी से बेहाल है, वहीं एक साधु अग्निकुंडों के बीच बैठकर अध्यात्म की अनोखी परीक्षा दे रहा है। जिले के शिव मंदिर परिसर में संत सुरेश नाथ योगी 40 डिग्री तापमान में 61 दिनों की अग्नितपस्या कर रहे हैं। यह तपस्या हर वर्ष आयोजित की जाती है, लेकिन इस साल की तपस्या विशेष ध्यान खींच रही है क्योंकि गर्मी की तीव्रता अपने चरम पर है।
मंगलवार को तपस्या का 50वां दिन था। संत सुरेश नाथ योगी प्रतिदिन सुबह 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक चारों ओर जलते हुए अग्निकुंडों के बीच बैठकर ध्यान करते हैं। उनके चारों ओर जलती लकड़ियों की लपटें गर्मी को कई गुना बढ़ा देती हैं, लेकिन वे पूर्ण ध्यानस्थ रहते हैं।
संत सुरेश नाथ योगी ने कहा:
"मैं यह तपस्या विश्व कल्याण, पर्यावरण शुद्धि और भारतवर्ष की सुख-समृद्धि के लिए करता हूं। यह शरीर की नहीं, आत्मा की परीक्षा है।”
संत की तपस्या को देखने के लिए राजसमंद और आसपास के जिलों से हजारों लोग शिव मंदिर पहुंच रहे हैं। तपते सूरज और अग्निकुंडों के बीच बैठकर 2 घंटे तक बिना किसी सहारे के ध्यान लगाना आमजन के लिए चौंकाने वाला अनुभव बन गया है।
श्रद्धालु बोले:
“इतनी गर्मी में हम छांव खोजते हैं और ये संत अग्नि में ध्यान करते हैं। यह कोई सामान्य मनुष्य नहीं कर सकता।”
महंत सुरेश नाथ योगी पिछले कई वर्षों से यह तपस्या कर रहे हैं। उनका मानना है कि यह अग्नितपस्या न केवल आत्मशुद्धि का माध्यम है बल्कि समाज को सकारात्मक ऊर्जा देने का भी तरीका है। हर वर्ष 61 दिनों तक चलने वाली यह साधना अब राजसमंद की आध्यात्मिक पहचान बन चुकी है।
राजस्थान के इस तपते मौसम में जहां तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है, वहीं आग की लपटों के बीच दो घंटे बैठना आम इंसान के लिए असंभव जैसा प्रतीत होता है। लेकिन संत सुरेश नाथ योगी इसे आध्यात्मिक साधना का भाग मानते हैं और एकाग्रचित होकर प्रतिदिन अपने समय पर बैठ जाते हैं।
राजसमंद में हो रही यह अनूठी अग्नितपस्या भारतीय संत परंपरा की संयम, साधना और संकल्प शक्ति का जीवंत उदाहरण है। यह नजारा न सिर्फ लोगों को आकर्षित कर रहा है, बल्कि उन्हें धर्म, साधना और तपस्या के महत्व का बोध भी करा रहा है। ऐसे तपस्वियों का जीवन समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है, जो दिखाता है कि आत्मबल और श्रद्धा से कुछ भी संभव है।
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