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200 साल की हिंदी पत्रकारिता: मूल्यबोध और राष्ट्रहित के अधिष्ठान पर खड़ी पत्रकारिता की विरासत

"हिंदुस्तानियों के हित के हेत" यह वाक्य न केवल हिंदी पत्रकारिता के जन्म का घोष है, बल्कि इसके मूल उद्देश्य का सार भी है। 30 मई 1826 को जब पंडित युगुल किशोर शुक्ल ने कोलकाता से ‘उदंत मार्तण्ड’ का प्रकाशन किया, तब उन्होंने न केवल भाषा को मंच दिया, बल्कि एक वैचारिक आंदोलन की नींव रखी – ऐसा आंदोलन जो राष्ट्रहित, मूल्यबोध और जन सरोकारों पर आधारित था।


पत्रकारिता की पहली मशाल: 'उदंत मार्तण्ड'

इस ऐतिहासिक दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में इसलिए मनाया जाता है क्योंकि यह हिंदी के पहले समाचार पत्र की शुरुआत का दिन है। संयोग से यह दिन नारद जयंती भी था, जिन्हें पत्रकारिता का आद्य पुरुष माना जाता है। इस पत्र के पहले संपादकीय में ही पत्रकारिता के उद्देश्य को स्पष्ट किया गया – "हिंदुस्तानियों के हित के हेत", जो आज भी प्रासंगिक है।


मूल्यों की मशाल और पत्रकारिता का संक्रमण

प्रो. संजय द्विवेदी के विचारों में स्पष्ट रूप से यह चिंता दिखती है कि पत्रकारिता आज जिस दोराहे पर खड़ी है, वहां सेवा, संयम, और राष्ट्र कल्याण जैसे मूल्य पीछे छूटते जा रहे हैं।
कभी पत्रकारिता महात्मा गांधी, गणेशशंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी जैसे व्यक्तित्वों की प्रेरणा से संचालित होती थी, आज यह बहुधा रुपर्ट मर्डोक या मार्क जुकरबर्ग जैसी कॉर्पोरेट सोच के दायरे में सिमट रही है।


भूमंडलीकरण और मीडिया का बदलता चेहरा

1991 के बाद भारतीय समाज, राजनीति और मीडिया तीनों ने एक नई दिशा पकड़ी। उदारीकरण और वैश्वीकरण ने मीडिया को भी बाजार केंद्रित बना दिया। मीडिया अब केवल जनचेतना नहीं, बल्कि उपभोग और प्रभाव के आंकड़ों से संचालित हो रहा है।
यही कारण है कि जब दत्तोपंत ठेंगड़ी जैसे विचारक ‘वित्त मंत्री’ को ‘अनर्थ मंत्री’ कहते हैं, तो वे सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि नैतिक विघटन की ओर भी इशारा करते हैं।


सोशल मीडिया, पठनीयता का संकट और नैतिकता की चुनौती

डिजिटल युग में मीडिया को एक नई चुनौती मिली – पठनीयता का संकट, सूचना की अधिकता, और संवेदना की कमी
आज पत्रकारिता में "कौन पहले" और "कौन ज़्यादा वायरल" जैसे मापदंड हावी हो गए हैं। मगर इस भीड़ में भी कुछ मशाल थामे लोग हैं, जो अब भी मानते हैं कि पत्रकारिता का कार्य केवल सूचना देना नहीं, बल्कि सूचना का सत्यान्वेषण है।


मूल्यबोध की पुकार और भविष्य की दिशा

प्रो. संजय द्विवेदी का यह कहना बहुत गूंजता है:

"मीडिया का काम सूचनाओं का सत्यान्वेषण है, वरना वे सिर्फ सूचनाएं होंगी – खबर नहीं बन पाएंगी।"

इसलिए आज की जरूरत है कि मीडिया फिर से ‘लोकमंगल’, ‘सत्य’, ‘नैतिकता’ और ‘संवेदना’ को अपने मूल में वापस लाए।
जब तक पत्रकारिता समाज के मत परिष्कार और नैतिक मार्गदर्शन की भूमिका नहीं निभाएगी, तब तक वह समाज में अपनी विश्वसनीयता नहीं पुनः स्थापित कर पाएगी।


निष्कर्ष: भरोसे की पुनर्स्थापना ही पत्रकारिता की नयी चुनौती

दुनिया भले बदल गई हो, माध्यम चाहे प्रिंट से डिजिटल हो गया हो, मगर पत्रकारिता का मूल धर्म – सत्य, मूल्य और राष्ट्रहित – नहीं बदल सकता।
हिंदी पत्रकारिता के 200 साल इस बात के साक्षी हैं कि मूल्यों के बिना पत्रकारिता एक खोखला व्यापार मात्र बन जाती है। और वही मूल्य, वही आदर्श आने वाले 200 वर्षों की दिशा भी तय करेंगे।

Written By

Monika Sharma

Desk Reporter

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