लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। मोहनलालगंज तहसील के गौरा गांव की मिट्टी की एक कच्ची झोपड़ी से उठता धुआं उस दिन की एक दिल दहला देने वाली कहानी की गवाही दे रहा था। घर की महिला संतोषी देवी, उम्र लगभग 32 वर्ष, रसोई में खड़ी थी और रोज़ की तरह अपने पति से राशन की शिकायत कर रही थी:
"घर में न नमक है न तेल है। जब तक तुमसे 20 बार न कहो, तुम सुनते ही नहीं।"
परंतु यह शिकायत उस दिन पति रघुनंदन के दिमाग में जैसे बारूद की चिंगारी बन गई।
जांच में खुलासा हुआ कि रघुनंदन अपनी ही भाभी के साथ संबंध बनाना चाहता था, जिसका उसकी पत्नी संतोषी लगातार विरोध कर रही थी। यह बात आरोपी को नागवार गुजरी और उसने पत्नी के विरोध को अपनी मर्दानगी पर चोट समझा। क्रोध में अंधे रघुनंदन ने उसी सुबह एक कुल्हाड़ी उठाई और अपने पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया।
इस वीभत्स हत्या कांड में रघुनंदन ने संतोषी के साथ-साथ अपने डेढ़ साल के मासूम बेटे को भी बेरहमी से कुल्हाड़ी से काट डाला। घटनास्थल पर मौजूद पुलिस ने बताया कि शवों की हालत इतनी भयावह थी कि पहचानना मुश्किल हो रहा था।
घटना के बाद पूरे गौरा गांव में शोक और डर का माहौल फैल गया। स्थानीय लोग स्तब्ध थे कि एक सामान्य दिखने वाला व्यक्ति ऐसा हैवान कैसे बन सकता है। पुलिस ने आरोपी को उसी दिन हिरासत में ले लिया था। पूछताछ में उसने अपराध कबूल करते हुए बताया कि पत्नी उसे भाभी के पास जाने से रोकती थी, इसलिए उसने यह कदम उठाया।
घटना की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन प्रशासन ने इस केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजा था। अदालत ने आरोपी रघुनंदन को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे बाद में उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा। यह मामला आज भी उत्तर प्रदेश के सबसे क्रूर पारिवारिक हत्याकांडों में गिना जाता है।
मोहनलालगंज का यह हत्याकांड न सिर्फ एक परिवार की त्रासदी है, बल्कि यह समाज के उस घिनौने चेहरे की भी झलक है, जहां वासनात्मक अंधेपन में इंसान इंसानियत को पूरी तरह भूल जाता है। यह घटना आज भी बतौर चेतावनी हमारे सामने है कि मानसिक विकृति और पारिवारिक संवादहीनता किस हद तक खतरनाक हो सकती है।
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