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बकरीद पर बचाए गए 124 बकरों का क्या हुआ? यूपी में चलाई जा रही 'बकराशाला', संस्था ने बताई पूरी कहानी

नई दिल्ली/लखनऊ: पिछले साल बकरीद से पहले एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ था। दिल्ली के चांदनी चौक स्थित एक मंदिर में 100 से ज्यादा बकरे खड़े थे, जिन्हें चारा खिलाया जा रहा था। वीडियो में दावा किया गया था कि इन बकरों को ईद पर कटने से बचा लिया गया है। अब, एक साल बाद सवाल उठ रहा है—इन बकरों का क्या हुआ?


संस्था ने दी जानकारी, यूपी में चल रही 'बकराशाला'

बकरों को बचाने वाली संस्था के अध्यक्ष ने हाल ही में जानकारी दी कि सभी बकरों को उत्तर प्रदेश के एक सुरक्षित आश्रय स्थल, जिसे ‘बकराशाला’ कहा जा रहा है, में रखा गया है। यहाँ उनका देखभाल, चारा और चिकित्सा सुविधाओं के साथ पालन किया जा रहा है।

संस्था ने यह भी स्पष्ट किया कि उन्होंने मुस्लिम बनकर बकरे नहीं खरीदे थे, बल्कि खुले रूप से यह कार्य पशु अधिकार और करुणा के आधार पर किया गया।


वायरल वीडियो और समाज में चर्चा

2024 की बकरीद से एक हफ्ते पहले, सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस वीडियो ने धार्मिक और सामाजिक स्तर पर बड़ी बहस छेड़ दी थी। कुछ लोगों ने इसे धार्मिक भावना से जोड़कर आलोचना की, तो कई लोगों ने पशु संरक्षण की दिशा में यह एक साहसिक कदम बताया।


मंदिर परिसर से यूपी तक का सफर

संस्था के मुताबिक, 17 जून 2024 को दिल्ली से बकरों को सुरक्षित ट्रक में यूपी के एक पशु आश्रय केंद्र में भेजा गया, जहां उनकी संख्या धीरे-धीरे घटते हुए वर्तमान में लगभग 95 रह गई है। कुछ बकरों की प्राकृतिक मृत्यु हो गई, जबकि कुछ को दूसरी गोशालाओं में शिफ्ट किया गया।


क्या कहता है कानून?

पशु अधिकार कार्यकर्ता दावा करते हैं कि उन्होंने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत कार्य किया है, जिसमें धार्मिक त्याग के नाम पर निर्दोष जानवरों की हत्या पर संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की अपील की गई है।

हालांकि, इस पर कोई आधिकारिक कानूनी कार्रवाई नहीं हुई, लेकिन संस्था के प्रतिनिधियों को कई बार पुलिस पूछताछ और ऑनलाइन ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा।


संस्था की अपील

संस्था के अध्यक्ष ने जनता से अपील की है कि धार्मिक भावनाओं को आहत किए बिना, पशुओं के प्रति करुणा और संवेदना बनाए रखें। उन्होंने कहा कि अगर समाज चाहे तो हर त्योहार प्रेम और करुणा के साथ मनाया जा सकता है।


निष्कर्ष

124 बकरों को बचाने का यह मामला सिर्फ एक धार्मिक मुद्दा नहीं, बल्कि पशु अधिकारों और मानवीय संवेदनाओं की भी गवाही देता है। एक साल बाद भी ये बकरे सुरक्षित हैं और एक नई दिशा की ओर संकेत कर रहे हैं—जहां परंपरा और करुणा का संतुलन संभव है।

Written By

Monika Sharma

Desk Reporter

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