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राजस्थान की एम्बुलेंस में ऑक्सीजन सिलेंडर ही नहीं:कूलिंग सिस्टम काम नहीं कर रहे, स्टाफ नहीं; सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक 10 फीसदी एम्बुलेंस में खामियां

जयपुर: राजस्थान की जीवन रक्षक मानी जाने वाली 108 और 104 एम्बुलेंस सेवाएं आज खुद वेंटिलेटर पर नजर आ रही हैं। हाल ही में नेशनल हेल्थ मिशन (NHM) द्वारा कराए गए सर्वे में सामने आया है कि राज्य की करीब 10 फीसदी से ज्यादा सरकारी एम्बुलेंस गंभीर खामियों से जूझ रही हैं।

NHM सर्वे में चौंकाने वाले खुलासे

सर्वे के अनुसार:

  • कई एम्बुलेंस में ऑक्सीजन सिलेंडर ही नहीं हैं, जो आपातकालीन चिकित्सा सेवा का मुख्य हिस्सा होते हैं।

  • कूलिंग सिस्टम यानी एसी या वेंटिलेशन खराब पड़े हैं, जिससे गर्मियों में मरीजों की स्थिति और बिगड़ सकती है।

  • बड़ी संख्या में एम्बुलेंस बिना प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ के चल रही हैं, जिससे मरीजों को समय पर प्राथमिक इलाज तक नहीं मिल पा रहा।

मरीजों की जान जोखिम में

विशेषज्ञों का कहना है कि इमरजेंसी में हर मिनट कीमती होता है। ऑक्सीजन, मेडिकल स्टाफ और ठंडी एम्बुलेंस जैसी सुविधाओं के अभाव में मरीज की जान बचाने में मुश्किलें बढ़ जाती हैं। कई मामलों में मरीजों को बीच रास्ते में दूसरी गाड़ी में शिफ्ट करना पड़ा, जिससे देरी हुई।

जिलों से मिल रही शिकायतें

राज्य के अलग-अलग जिलों से भी एम्बुलेंस सेवाओं को लेकर लगातार शिकायतें मिल रही हैं। कहीं गाड़ियां समय पर नहीं पहुंचतीं, तो कहीं वाहन तकनीकी खराबी के कारण रास्ते में ही रुक जाते हैं। कई जगह तो एम्बुलेंस ड्राइवर खुद ही स्ट्रेचर खींचकर मरीज को वाहन तक लाने को मजबूर हैं।

सरकारी जवाबदेही पर सवाल

NHM की रिपोर्ट सामने आने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग की ओर से अब तक कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है। हालांकि कुछ अधिकारियों ने बताया कि "एम्बुलेंस सेवाओं को जल्द ठीक करने के लिए समीक्षा की जा रही है और बजट आवंटन पर विचार चल रहा है।"

जनता में आक्रोश

बीमार, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने के लिए सरकार जिन सेवाओं पर करोड़ों खर्च करती है, वही सेवाएं अब भरोसे के लायक नहीं रह गई हैं। आमजन अब इन व्यवस्थाओं को लेकर सरकार से जवाबदेही की मांग कर रहा है।


निष्कर्ष:

राजस्थान की सरकारी एम्बुलेंस सेवाओं की हालत चिंताजनक है। NHM की रिपोर्ट ने एक बार फिर स्वास्थ्य तंत्र की कमजोरी को उजागर किया है। जरूरत है कि सरकार इस मुद्दे को प्राथमिकता में रखकर जल्द सुधारात्मक कदम उठाए, ताकि आमजन की जिंदगी बचाने वाली ये गाड़ियां खुद इलाज की मोहताज न बनें।

Written By

Monika Sharma

Desk Reporter

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